लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-9)# कहानीकार प्रतियोगिता के लिए
गतांक से आगे:-
श्यामलाल जब महल के खंडहर में पहुंचे तो उन्होंने देखा परी एक बड़ी सी समतल चट्टान के ऊपर लेटी है ।उसने बड़ा ही सुन्दर श्रृंगार किया हुआ है पर कपड़े वहीं है जो कल रात को पहन कर सोई थी । श्यामलाल अचंभित थे कि ये परी का श्रृंगार किसने किया । बड़ी ही सुंदर लग रही थी ।कहीं कोई बलि वगैरह तो नहीं देना चाहता था। उन्होंने परी को झिंझोड़ कर जगाया।वह ऐसे उठी जैसे कोई सपना देख रही हो।जब सामने अपने बापू को देखा तो एकदम से चौंक गयी,
"बापू आप …. क्या बात मुझे उठने में ज्यादा देर हो गई है क्या वरना तो मां ही जगाती हैं मुझे।"
यह कहकर वह अपने आसपास की जगह को देखने लगी और अपना माथा पकड़ लिया,
"ओहहह….. फिर से , आज फिर से वही बात हो गई ,आज मैं फिर से सपने में चल कर इस महल के खंडहरों में आ गयी।बापू.. ये मेरे साथ क्या हो रहा है मैं क्यों बार बार इस खंडहर में पहुंच जाती हूं।"
यह कहकर वह रोने लगी। श्यामलाल उसे चुप करने लगा और अपने साथ घर ले आया।बेटी को देखकर चम्पा की बांछे खिल गई ।वह दौड़कर अपनी बेटी को गले लगा ली।उनकी एक ही तो बेटी थी सुंदर सुशील पर पता नहीं क्या बीमारी लगी थी नींद में चलते चलते पता नहीं कहां पहुंच जाती थी। चम्पा ने परी को पुचकारते हुए अपने पास बैठाया और पानी पिलाकर उसे शांत किया फिर उससे बड़े ही प्यार से पूछा"बिटिया तुम्हें क्या होता है जो तुम अचानक से उठकर चल देती है।"
परी फिर से आंखों में आसूं भर कर बोली,"पता नहीं मां मुझे सपने में बड़ा ही खूबसूरत महल दिखाई देता है ।ओर मैं जैसे उसमें नाच रही हूं ।मैंने बड़े ही सुन्दर कपड़े पहन रखे हैं बस….. फिर उसके बाद मुझे नहीं पता मेरे साथ क्या होता है और मैं जब उठती हूं तो अपने आप को महल के खंडहरों में पाती हूं।"
तभी श्यामलाल बोले,"तुम देख नहीं रही आज मेरी बेटी ने कितना सुन्दर श्रृंगार किया है । मुझे तो ये वहां समतल चट्टान पर लेटी मिली । भाग्यवान मैं तो समझा कहीं कोई हमारी बेटी की बलि तो नहीं दे रहा । मैं तो वहां से फटाफट ले आया बिटिया को।"
तभी चम्पा की नजर परी के कानों की तरफ गई ।उसने देखा परी ने बड़े ही सुन्दर कानों के झूमके पहन रखे हैं।उसने पूछा,"बिटिया ये झूमके किस के है ?"
"कहां है मां?"
"ये जो तूने कानों में पहन रखे हैं ।"
"परी दौड़कर शीशे के सामने गयी तो वास्तव में बड़े ही सुन्दर झूमके कानों में लहरा रहे थे।
"मुझे नहीं पता मां ये मेरे कानों में कैसे आये"
श्यामलाल का तो माथा ही घूम गया था जवान इकलौती लड़की को ना जाने क्या हो गया था।
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इधर भूषण प्रसाद असमंजस में थे कि वो लड़की आखिर गयी कहां? उन्होंने राज के कंधे पर हाथ रखा और उसे अंदर चलने को बोला क्यों कि बाहर ठंड बढ़ चुकी थी। राज का सिर भी चक्कर खा रहा था वह यही सोचे जा रहा था कि इतनी सी देर में लड़की कहां गायब हो सकती है ।वह अंदर आकर बिस्तर पर लेट गया नींद का तो नामोनिशान भी नहीं था उसकी आंखों में ।सुबह तड़के ही उसकी आंख लगी थी ।
आज भूषण प्रसाद के कुछ वर्कर्स काम पर नहीं आ रहे थे तो खुदाई का काम रुका हुआ था इसलिए आज वो लेट ही उठे थे क्योंकि काम की आज छुट्टी थी । इसलिए सुबह की चाय उन्होंने नौ बजे ली ।अकेले थे तो चाय लेकर लान में आकर बैठ गये थे।
उन्होंने देखा नया माली लान की घास साफ कर रहा था । क्योंकि उसके ससुर की मौत के बाद उनके सारे पुराने काम वो ही सम्भाल रहा था ।ये माली और कोई नहीं श्यामलाल ही था। आज उसका उतरा हुआ मुंह देखकर भूषण प्रसाद बोले,"श्यामलाल क्या बात इतना धीरे-धीरे काम कर रहे हो? क्या बात तबीयत खराब है क्या?"
"नहीं साहब ऐसा तो कुछ नहीं है।बस बिटिया के विषय में सोच रहा था ।"
"क्यों क्या हुआ तुम्हारी बिटिया को?"
"पता नहीं साहब जी ,जब से इस गांव में आई है तब से सपने मे ही उठकर चल पड़ती है ।कभी कभी तो कभी कभी मिलती है।"
"किसी अच्छे डाक्टर को दिखाओ। बहुत से लोगों में ये बीमारी होती है।"
श्यामलाल ने हां में सिर हिलाया ।तभी घास काटते हूं उसकी नजर घास में चमक रही कोई चीज पर पड़ी।उसने झुक कर उसे उठाया तो देखकर दंग रह गया क्योंकि यह वैसा ही झूमका था जो आज सुबह उसकी बेटी के कानों में था। श्यामलाल ने वो झुमका उठाकर भूषण प्रसाद की नजरों से बचा कर अपनी जेब में डाल लिया।
वह वहां से फारिग होकर घर की ओर जा रहा था और सोचें जा रहा था कि आखिर कार में झूमका साहब जी के बगीचे में कैसे आया । क्या परी यहां आई थी? अगर यहां आई थी तो फिर वह महल के खंडहरों मे कैसे पहुंची ? क्यों कि साहब जी के घर से महल के खंडहर तो बहुत दूर है। वह बस सोचे ही जा रहा था ।
जब वह घर पहुंचा तो चम्पा खाना लगा रही थी ।उसने जाते ही परी के विषय में पूछा ,"परी कहां है?"
"सो गयी तुम्हारी लाड़ली ।रात को सपनों में चलेगी तो सोये गी ही।कह रही थी मां आज बहुत ज्यादा थकान महसूस हो रही है।"
श्यामलाल ने कहा,"हां थकान तो होगी ही इतना चल कर जो आ रही है ।"
"क्या मतलब है आपका? चम्पा ने हैरानी से पूछा।
श्यामलाल ने जेब से वही झूमका निकाल कर चम्पा को दिखाया, "ये देख ,ये वैसा ही झूमका है ना जो परी सुबह पहने हुए थी।"
"हां हां वही है। पर तुम्हें कहां मिला?"
साहब भूषण प्रसाद जी के बगीचे से । और परी मुझे सुबह महल के खंडहरों से मिली ।अब तुम ही देखो महल के खंडहरों तक जाना हो तो गाड़ी से जाया जाएगा । लेकिन हमारी बिटिया ने ये रास्ता पैदल ही पार किया।"
"लेकिन ये भूषण प्रसाद जी के यहां क्या करने गयी थी?"
चम्पा हैरान थी।
कहानी अभी जारी है……………
Mohammed urooj khan
18-Oct-2023 02:49 PM
👌👌👌
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KALPANA SINHA
12-Aug-2023 07:15 AM
Nice part
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